चल के दिखाना है
लेखक- लक्ष्मण माहेश्वरी
रास्ते कुछ बन्द हुए
मुश्किलें सब बढ़ गईं।
अब इनके पार पाना है
हिम्मत बना, आज चल के दिखाना है।।
हसीन मंज़िलों के ख़्वाब बना
दबी उमंगें फिर से जगा।
नए रास्तों को बनाना है
हौसला जुटा, अब बढ़ के दिखाना है।।
पीछे पलट के ना देख
कल था, वो चला गया।
सफ़र तो सोच शुरू हुआ है
जज़्बा रख, कुछ कर के दिखाना है।।
सफ़र
लेखक- लक्ष्मण माहेश्वरी
रुके रह कर जब थक गये
दो क़दम हम चल दिये
खड़े रह कर भी देखा था
हमें छोड़ सब बढ़ लिए।
मुक़ाम की इच्छा है, मगर
रास्तों से वाक़िफ़ी ज़रूरी है
मंज़िल से तजुरबेदार सफ़र मान
एक राह पर हम बढ़ लिए।
कुछ कठिन हैं रास्ते, माना
हिम्मत में पर कमी नही
और साथी कुछ एेसे मिले
जिन्होंने हौसले बुलन्द कर दिए।
हर रोज़ अलग है यहाँ
जो ना समझे वो थम गये
हम राही तेज, कभी धीरे
इन रास्तों पर बस चल दिए।
टोका, रोका कुछ ने
कुछ टूटे, कुछ साथ रहे
है और चलना हमें अभी
अकेले, तो कभी क़ाफ़िलों में बढ़ लिए।।
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